दिव्य मानव ने मेरे अनकहे ही आशय को समझा दिव्य मानव ने मेरे अनकहे ही आशय को समझा
नदी के दो किनारों से बहते यूँ तो आ गए पास कितने नदी के दो किनारों से बहते यूँ तो आ गए पास कितने
आस्था ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया। और हम एक-दूसरे का सहारा बन, मंदिर की सीढ़ियां चढ आस्था ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया। और हम एक-दूसरे का सहारा बन, मंदिर की सीढ़...
इसी को तो कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह। इसी को तो कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह।
उनके मधुर मिलन की बेला स्वच्छ चांदनी के समान अमृत मय हो गई थी। उनके मधुर मिलन की बेला स्वच्छ चांदनी के समान अमृत मय हो गई थी।
तुम धन्य हो। तुम्हारे विचार धन्य है। तुम जुग जुग जियो मेरे बेटा। तुम धन्य हो। तुम्हारे विचार धन्य है। तुम जुग जुग जियो मेरे बेटा।